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समझदार मुस्कान

गम में मुस्कुरा पाना ही शायद बड़े होने की पहचान है पर जब घर से बाहर रहना सीखते हैं, घर की जिम्मेदारियां उठाने लगते हैं तो क्यों न खुद को बेहतर बनाने के साथ साथ खुश रहना भी सिखाएं। आप उचित अनुचित पर विवाद कर सकते हैं, पर जब हम नए लोगों से मिलते हैं तो जरूरी नहीं कि वो हमसे प्यार और इज्जत से मिले, हमारी मोहब्बत हर बार मुकम्मल हो, दोस्ती में समझ और लगाव दोतर्फा हो, हमारी काबिलियत और आसुलों के हिसाब से हरजाना पूरा मिले । परंतु इस सब में हम मुस्कुराना भूल जाएं ये शायद हमारे खुद के साथ गलत होगा।  कभी कभी दो दिन रुक के खुद खुद को सांस ले पाने का मौका देना पड़ता है। लोगों से लगाई उम्मीदों को कम करना सीख लेना चाहिए। जो बात होंसले से बाहर जाए तो सामने से दोस्त को अपनी तकलीफ से तंग कर लेना चाहिए। और जो शहर में कोई अपना न हो तो खुद पे मेहनत करना सीख लो। गिरना उठना चला रहेगा पर अपनी मुस्कुराहट संजो के रखना शायद हमारा खुद का जिम्मा है।  PS - अगर आप 1 प्रतिशत भी मेरी तरह हैं, तो यकीन मानिए अनुशासन और कान्हा जी को अपने पास रख के देखिए, दिन अपने आप बेहतर होते चले जायेंगे। जो काम से छुट्टी मुश्किल हो तो